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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

कविता ....

जिंदगी मुझसे रूठ गई ....

जब से तुझे देखा मैं 
मेरी नींदे उड़ गई 
तुम्हें दूर जाते देखकर 
मेरी अँखियाँ रो पड़ी 
तुम्हें ! बस मैंने देखना चाहा 
पर मेरी किस्मत न रही 
तेरे प्यार पाने के लिए 
मैंने अपनी मुद्दत तोड़ दी 
पर आज तक 
तुम्हें अपनी प्यार के .........
दो बोल न कह सका 
और यूँ ही !
जिंदगी मुझसे रूठ गई ........

000लक्ष्मी नारायण लहरे 





कविता ......

एक पत्र ...
सुबह का समय था 
नहाने के लिए  घर से कुछ दूर निकला था 
रोज की तरह गीत -गुनगुनाते 
तालाब की ओर कदम बढ़ रहे थे 
पीछे से आवाज सुनाई दी 
ये पागल .........
मैं आगे ही चला जा रहा था 
वापस उस राह से गुजरने लगा जब 
पीछे से आवाज सुनाई दी ....
रुकिए ....
मैं चौक गया 
जब रुका तब बोली 
नाराज हो गए क्या 
मैं चुप रहा 
ओ पागल कहती रह गई 
मैं हँसता रह गया 
000000लक्ष्मी नारायण लहरे