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शुक्रवार, 20 मई 2011

मेरे आँगन में तुलसी .......लक्ष्मी नारायण लहरे .

कविता 

मेरे आँगन में तुलसी .......

अँधेरे कमरे में 
दम घूंट रही थी 
मन परेशान था 
आँखों में अँधेरा 
तन भी जवाब दे रहे थे 
सब कुछ धीरे -धीरे  शून्य होते जा रहे थे 
अपनों को आवाज दे -देकर  मुंह थक सा गया था 
अँधेरे कमरे में 
न जाने ! कैसे सूरज की किरणें घुंस आयी 
आँखों में चमक आ गई 
सूरज की नई किरण 
मेरे मन में भी टकराई 
जब आँखें खुली 
मेरे आँगन में तुलसी ....की नन्हा सा पौधा मुस्का  रही थी 
मद्धम -मद्धम हवाएं मेरे पास पहुँच रही थी 
ऐसा लगा मुझे 
 हर -घर , हर आँगन में लगे तुलसी ..का पौधा 
तो ...साहिल ...अँधेरे जीवन में नई जीव भर दे .....
लक्ष्मी नारायण लहरे .....

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