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बुधवार, 23 मार्च 2011

नव सृजन समाज .....


नव सृजन समाज ....... गढ़ें ...
इन आँखों में अब नींद कहाँ 
इन सांसों में अब हवाएं कहाँ 
न सुबह की ,न शाम की 
न अपना ,न कोई पराया 
यहाँ तो लड़ाई है 
बस ,नव सृजन समाज की 
आखिर समरसता कैसे पैदा हो 
कोई न लड़े-जाती ,धर्म ,रंग पर 
हर आँगन में खुशहाली हो 
ऐसा नव सृजन करें 
माता -पिता का हो सम्मान 
ऐसा गुण हर सपूत में गढ़ें 
नव सुबहा से पहले 
नव सृजन समाज गढ़ें 
ऊँच-नीच की दिवार को 
आओ मिलकर समान करें 
नव सुबह से पहले 'साहिल ;
नव सृजन समाज गढ़ें 
 लक्ष्मी नारायण  लहरे 
ग्रामीण मित्र 

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