नव सृजन समाज ....... गढ़ें ...
इन सांसों में अब हवाएं कहाँ
न सुबह की ,न शाम की
न अपना ,न कोई पराया
यहाँ तो लड़ाई है
बस ,नव सृजन समाज की
आखिर समरसता कैसे पैदा हो
कोई न लड़े-जाती ,धर्म ,रंग पर
हर आँगन में खुशहाली हो
ऐसा नव सृजन करें
माता -पिता का हो सम्मान
ऐसा गुण हर सपूत में गढ़ें
नव सुबहा से पहले
नव सृजन समाज गढ़ें
ऊँच-नीच की दिवार को
आओ मिलकर समान करें
नव सुबह से पहले 'साहिल ;
नव सृजन समाज गढ़ें
लक्ष्मी नारायण लहरे
ग्रामीण मित्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें